बुढ़ापे का इश्क






बुढ़ापा ये नहीं कहता कि जिंदगी का सफरनामा यहीं तक। बूढ़ों को भला कोई रोक सकता इश्क करने से। अरे, इश्क कीजिये, फिर समझिये कि जिंदगी क्या चीज है। लेकिन अब तो जिंदगी उतनी बची नहीं, लेकिन जितनी बची है उतनी में बहुत कुछ सोचा जा सकता है।

उम्र को आड़े आने को कौन कह रहा है। भई हौंसला होना चाहिये और कदम बढ़ने चाहिंये। यहां बिग बी की परदे की नकली कहानी नहीं है, यह तो रियल लाइफ है। रील और रियल में वास्तविकता का अंतर होता है। इश्क अपने से कीजिये। इश्क अपनी यादों से कीजिये। इश्क अपनी बातों से कीजिये। यहां इश्क करने के लिये इतना कुछ है कि इश्क करते-करते कब अंतिम सांस आ जाये पता ही न चले। इश्क में खो जाईये। जवान होने का दिखावा न कीजिये, दिल से जवान बनिये। कौन कहता है कि बुढ़ापे में जवानी नहीं आती। आयेगी जवानी आयेगी और इस कदर आयेगी कि जवानों को बचके निकला पड़ेगा संकरी गली से। कमाल है न, इश्क का भई मिजाज ही कुछ ऐसा है।

जरा गौर फरमायें। मैं कहता हूं:
इश्क अच्छे-अच्छों को बना देता है जवान,
और मिटा देता है बुढ़ापे के निशान।’

आलम ये रहेगा कि आप को पता ही नहीं चलेगा कि कब गुजर गये वो दिन जब तन्हाईयां हमसे बातें करती थीं और यादों में हम सिमटे रहते थे। सलवटों को ध्यान में रखकर ही तो हमने तय किया कि क्यों न अपने बुढ़ापे से ही इश्क किया जाये। बुजुर्गो जरा ध्यान दें, जरुरी नहीं कि आप इस कदर बूढ़ें हों कि इश्क-मिजाजी को बुरा मानें, बल्कि यह मान कर चलें कि अपने को भी तो जीना है चाहें कुछ दिन का ही क्यों न हो। तो क्यों न ऐसे जिया जाये कि जीने की तारीफ वहां भी की जाये जहां हमारा रास्ता जन्म लेने से पहले ही पक्का हो गया था।

चुप रहने में क्या रखा है। मैं मानता हूं कि बदलेंगे हम, बदलेंगे हमारे ख्यालात और बदलेंगे हम उन्हें जो हमें बूढ़ा कहते हैं, ताने मारते हैं। समझ अपनी है, वक्त अपना होगा और हम खुद को महसूस ही नहीं होने देंगे कि हम कौन सी अवस्था में जी रहे हैं। यह आसान नहीं, तो मुश्किल भी नहीं।

चलिये हम भी अभी से बुढ़ापे के इश्क की तैयारी करते हैं।
प्रस्तुत हैं मेरी कुछ पंक्तियां:

‘कुछ दूर चलें, हम भी तुम भी।
वहां न हम होंगे न तुम,
बस कुछ यूं ही होगा हर पल,
रुसवा हुआ, चुप भी, तन्हा भी,
वह मिजाज बदल देगी इक बात,
फिर होगा इश्क खुद से,
तबियत होगी खुश,
उड़ती यादों में,
डूब जायेंगे हम, कुछ पुरानी यादें,
सिमटी होंगी, इक तस्वीर में,
अब रंगीन होंगी यादें, वे पल,
क्योंकि यहां इश्क की बयार है,
बहती जैसे गंग लहर है,
फिर खामोश होगा सब कुछ,
न हम होंगे, न तुम, न पल,
पता नहीं क्या था,
पता नहीं अब क्या है?’

-HARMINDER SINGH