हाथ तो बस मौत थामेगी
रोशनी से मेरा नाता नहीं रहा। अंधेरे का आदि हो चला हूं। हर उस पल को अलविदा जिसने मेरे जीवन में ख्वाहिशें भरी थीं।
मैं कदमों को धीरे-धीरे बढ़ा रहा हूं। आंखों की शक्ति क्षीण हुई है। टिमटिमाती लौ कब बुझ जाए, किसे मालूम है। मैं नहीं जानता कि जीवन का सच क्या है? मुझे भय लगता है कि जीवन का निष्कर्ष होगा भी या नहीं।
अजीब है कि सच को जानकर भी इंसान घबराता है। घबराहट मुझे भी हो रही है क्योंकि मैं भी संसार में रहता हूं।
सफर में मेरे साथ कोई नहीं होगा। मैं सिर्फ अकेला रहूंगा।
जीवन की कड़ियां मुझसे कह रही हैं कि हमें जोड़कर अब कोई लाभ नहीं। टूट-फूट जितनी हुई है वह समय के साथ जाने कहां गई। सब भूल चुका मैं। इंसान होते ही ऐसे हैं। उनके जीवन में कई बातें ऐसी घट चुकी होती हैं जिन्हें वे बिल्कुल याद करना नहीं चाहते। जबकि बहुत कुछ ऐसा होता है जिसे वे भूलना नहीं चाहते। इसमें इंसान इंसान का फर्क है।
मेरा हाथ थामने वाला कोई नहीं। हाथ तो बस मौत थामेगी -एक बार और आखिरी बार।
-Harminder Singh