यूं ही चलते-चलते
सवेरे के बाद शाम हो गई,
यूं ही चलते-चलते,
आराम के बाद थकान हो गई,
यूं ही चलते-चलते,
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शरीर कह रहा अब बस,
बहुत हुआ खेल,
जवानी के सुखों का भाग,
बुढ़ापा रहा झेल,
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बुझा चेहरा मंद मुस्कान हो गई,
यूं ही चलते-चलते,
सुनहरी कभी, जिंदगी वीरान हो गई,
यूं ही चलते-चलते,
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मैं उदास हूं, सिर चौखट से लगाए,
उजाला खो गया,
चादर ओढ़ जर्जरता की,
इंसान सो गया,
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कभी बहती थी धारा, आज सूनसान हुई,
यूं ही चलते-चलते,
देख बुढ़ापा, जवानी हैरान हुई,
यूं ही चलते-चलते।
-Harminder Singh