हम सफर कितना लंबा ही तय क्यों न करें, किनारा मिलता नहीं। किनारे की तलाश सदा अधूरी रहती है क्योंकि यहां हर मोड़ एक किनारा है। सफर में लोग कभी खुशियां बिखेर जाते हैं इतनी ........इतनी कि उन्हें समेटा नहीं जा सकता। कभी दुश्वारियां पैदा कर जाते हैं इतनी कि वह खुशी को फिर सदा के लिए हमसे दूर कर देती हैं। यहीं आकर मैं रुक जाता हूं।
मैं रिश्तों को अपने जीवन में सिलने की कोशिश करना नहीं चाहता। मैं इसका हल देख चुका हूं। अकेला पड़कर ही मैं शांत हूं, संतुष्ट हूं। मेरा हृदय आदि हो चुका इस तरह रहने में। मन की मानकर चलता नहीं। मन नादान होता है। वह रोये, मैं यह भी नहीं चाहता।
मैं किसी से लगाव नहीं चाहता। सादाब को एक दिन मैं खो दूंगा। फिर उससे मुलाकात हो या न हो। अगर जुड़ाव का भाव स्थाई होता और हमारा जीवन भी, तो मैं दूसरों से लगाव करता।
सच्चाई को आखिर इंसान झुठला कैसे सकता है। इंसान प्रेम करता है, लेकिन वह कितने वक्त तक ठहरता है, केवल जबतक इंसान जीवित है। जीवन खत्म, सब खत्म। मैं भी इंसान ही हूं।
जो हमसे बिछड़ जाते हैं, उनकी मीठी यादों को हम संजो हर रखते हैं। हमारे जाने के बाद सब कुछ चला जाता है। यह सिर्फ जीवन तक सीमित बाते हैं। मोह से दूर जाने में ही भलाई है। लेकिन फिर वही सवाल मेरे सामने खड़ा हो जाता है। मैं लाजो को अपने मन से बाहर नहीं कर पा रहा, क्यों? अपने बच्चों से मिलने की ख्वाहिश मुझे तड़पाती है, क्यों होता है ऐसा?
मैंने बहुत कुछ खोया है। अब पाने की इच्छा नहीं रही। डर है फिर पाकर न खो दूं। दिल को दुखाने से अच्छा है, उसे संभल कर चलने की कला सिखाओ। वह भी खुश रहेगा और हम भी।
जारी है....
-Harminder Singh