‘हम अक्सर बहुत लोगों को भूल नहीं पाते। वे हमेशा याद रहते हैं।’ मैंने बूढ़ी काकी से कहा।
इसपर काकी बोली,‘हां, भूलना इतना आसान नहीं। इसमें लगाव की स्थिति उत्पन्न है। यह स्वत: ही है। मगर दूसरों की कुछ विशेषताएं हमें प्रभावित करती हैं। हम प्रभाव के कारण उनसे एक जुड़ाव महसूस करते हैं। मस्तिष्क में चीजें छपती हैं, लोग भी। कई बार कुछ ऐसा हो जाता है जिसकी छाप गहरी होती है। यह एक तरह का असर होता है जो आसानी से मिट नहीं पाता।’
‘हम उनकी बातों या घटनाओं को भूल नहीं पाते। इससे पता चलता है कि इंसान कितना अलग है। जबकि पशु ऐसा कम कर पाते हैं।’
मैंने काकी की बातों को सुना, फिर कहा,‘हमारी जिंदगी चलती है हौले-हौले और लोग भी जुड़ते हैं। कभी-कभी मुझे लगता है कि हम चारों ओर से घिरे हैं।’
काकी मुस्कराई। उसने कहा,‘देखो, समाज में रहना है तो सामाजिक भावना चाहिए। मैं अपनी सखा को नहीं भूली, और न ही शिक्षकों को। मेरी सखा मुझे बहुत कुछ सिखा गयी। शिक्षकों की सीखों से मैं आगे बढ़ पायी। हम यह भली-भांति जानते हैं कि रुकी हुई चीजें अच्छी नहीं लगतीं। मैं हंस सकती हूं क्योंकि मैंने सीखा है। इसलिए हमें चाहिए कि जीवन को भरपूर जियें।’
‘मुझे याद है जब मैं उदास थी तो मेरी सखा मेरे समीप आयी। उसने लाख कोशिश की, पर मैं नहीं मुस्कराई। उसने फूल की दो पंखुड़ियां मेरी किताब के पन्नों पर रख दीं। उसने कहा-‘जब मैं दुखी होती हूं तो अपनी किताब के पन्ने उलट लेती हूं। ऐसी ही दो पंखुड़ियां मैंने रखी हैं। उन्हें हमेशा हंसता हुआ पाती हूं। कुछ पलों में खुश हो जाती हूं।’ अपनी सखा की वह बात मैं कभी नहीं भूली। उस समय मैं उदास थी, लेकिन घर लौटकर जब मैंने फूलों की पंखुड़ियों को देखा तो मैं मुस्करा उठी। वे सूखकर भी खिली लगती थीं।’
‘मैंने एक बात सीखी कि लोग हमें भूल जाते हैं। हमने क्या किया इसे भी याद नहीं रखते। पर हमने उन्हें कैसा एहसास कराया, इसे वे जिंदगी भर भूल नहीं पाते।’
मैंने सोचा हम कुछ ऐसा कर जाते हैं कि हम दूसरों को अच्छे नहीं लगते। लेकिन कई बार हम इतना प्रभाव छोड़ जाते हैं कि कभी भूले नहीं जाते। शायद याद वे ही रहते हैं जो अहम होते हैं, और शायद दूसरों से अलग भी।
-Harminder Singh