मंगलवार के दिन मंगल ही हो यह सच नहीं। मैं ही क्यों अकेला बच जाता हूं, कष्ट सहने के लिए। क्या संसार के सारे दुख मेरी किस्मत में ही लिखे हैं? मुझे ही भगवान ने चुन रखा है कि मैं और व्यथित हो सकूं।
सादाब ने अस्पताल में अलविदा कह दिया। पता चला है कि उसकी दिल की धड़कन इतनी तेज हो गयी थी कि दिल और न धड़क सका। सांसें रुक गयीं, इंसान चला गया, रह गयीं बस यादें। सादाब को केवल अब याद किया जायेगा, वह भी जबतक वह याद रहेगा।
मेरा सबसे अच्छा मित्र बन चुका था वह। है कोई जो मुझे सुन रहा है। ईश्वर की मर्जी कितने दुखों को जन्म दे रही है। कितने लोगों की जिंदगी बिखेर रही है। सादाब की अम्मी, उसकी बहनों पर क्या बीत रही होगी। बड़ा दुख इतना अधिक हृदय को द्रवित कर देता है कि हम सोच ही नहीं पाते और गुमसुम से हो जाते हैं।
यह सब इतनी तेजी से हो गया कि मैं हतप्रभ रह गया। वह मर नहीं सकता था। उसे तो जीना था। कई काम अधूरे छोड़ गया, उन्हें कौन पूरा करेगा? बहनों के हाथ पीले करने थे, उन्हें आंसुओं से भीगी विदाई कौन देगा? भाई की लाश पर बहनों के आंसू उसे विदाई देंगे। एक मां ने पहले वैधव्य को स्वीकार किया, अब बेटे की मौत का रंज मनाने की तैयारी। जिंदगी भर यही होता रहता है -लोगों के लिए कुछ पल खुशियां लेकर आते हैं, तो कई पल ऐसे होते हैं जब दुख ही दुख होता है।
घनिष्ठता हम कर तो लेते हैं, लेकिन जब हमसे कोई छूट जाता है तब एहसास होता है कि इतना लगाव न करते, पीड़ा न होती। मगर इस कोमल हृदय को समझाये कौन। जहां हल्का-सा अपनापन देखा, वहीं का होकर रह गया। बड़ा कमजोर है यह हृदय। इसकी कमजोरी का आजतक फायदा ही उठाया जाता रहा। बेचारा पहले मोह में पड़ जाता है, फिर उसके पाश से छूटने के लिए छटपटाता है। कितना अजीब है हृदय!
to be contd.....
-Harminder Singh