हमें क्या हो जाता है? हम नहीं जानते। हमें मालूम नहीं होता कि हम करने क्या जा रहे हैं। आज उदासी को फिर मैंने करीब से छुआ। आज फिर से कुछ टूटा।
मुझे लगता है, जैसे पहले जैसा कुछ रहा नहीं। शायद धीरे-धीरे बिखरता जा रहा है कुछ।
इंसानों के चेहरे कभी तो हमें बहुत अच्छे लगते हैं। और कभी-कभी हम उनसे दूर जाने की कोशिश करते हैं। शायद इसलिए कि दूर रहकर कुछ सुकून मिल जाए, लेकिन मैं हर बार वहीं लौट आता हूं।
मेरी समझ में नहीं आता कि हम इतनी जल्दी गुस्सा क्यों कर जाते हैं? मेरी समझ में यह भी नहीं आता कि हम इतनी जल्द रो क्यों जाते हैं? आंसू बहाते हैं, गुस्सा करते हैं, लेकिन फिर भी करीब रहते हैं।
जो लोग कभी हमारे लिए ‘स्पेशल’ रहे हों, हम आज ऐसे हो गये कि उनसे बात करने का मन नहीं करता। ऐसा क्या हो गया कि हम उनसे दूरी बनाते जा रहे हैं। शायद इसे समझने में वक्त लगे।
मैं नहीं समझता कि इससे कुछ लाभ हो। तो चुप रहने में ही भलाई है।
अगर हम उन्हें खुश नहीं रख सकते तो दुख क्यों दें।
विचारों का मेल कितना जरुरी है, यह मैं जान गया। इसमें उम्र का कोई मतलब नहीं रह जाता। कभी हम बात इस तरह करते हैं जैसे वर्षों से एक-दूसरे को जानते हों। और कभी ऐसे हो जाते हैं कि सदियां रुखेपन में बीत गर्इं।
मैंने खुद को कह दिया कि जब हम एक-दूसरे को समझ नहीं पा रहे तो दूर जाने में ही फायदा है। लेकिन मन ही फिर रुकने को कह देता है। मैं विवश हूं, रुक जाता हूं।
दो समानांतर रेखाएं उतनी दूरी पर ही रहती हैं। वे कभी मिल नहीं पातीं। हां, एक-दूसरे की करीबी का एहसास जरुर उन्हें रहता है, लेकिन कह नहीं पातीं।
-Harminder Singh