बूढ़ी काकी ने मुझसे कहा,‘‘जीवन को हम कभी समझ नहीं पायेंगे, कभी नहीं। इसलिए जीवन की त्वचा को देखकर ही संतुष्ट हैं। मैंने जीवन की गहराई में जाना छोड़ दिया है। कोई ऐसे दरिया को बारीकी से पढ़ना नहीं चाहेगा जिसमें बारीकी पर बारीकी ही आती रहे।’’
‘‘उलझे हुए धागे हमें उलझन में डाल देते हैं। कहीं चीजें सिलकर चलती हैं, कहीं उधड़ी हुई। बुनाई की सुन्दरता अद्भुत है और काश्तकारी बे-हिसाब। असंख्य रंगों से रंगी बेलें लहराती रहती हैं। सभी को सीने से लिपटाये फिरती है जिंदगी। कोमल पत्तों की छांव या कांटों की चुभन, सबको बर्दाश्त करती है जिंदगी। सरल होकर भी जटिल है जिंदगी।’’
इतना कहकर काकी चुप हो गयी।
उसकी बूढ़ी आंखों में जीवन के शांत उत्सव बिखरे थे।
काकी ने कहा,‘‘उदासी से लेकर मुस्कराहट तक सबकी पोटली बांध कर समय का इंतजार रहता है। समय आया, खेल शुरु। समय खत्म, खेल खत्म। अनजानी लहरें कभी भी छेड़ सकती हैं। नाव को किनारा मिले या न मिले, लेकिन वह सरपट दौड़ती रहती है, सतह को छूती हुई। कहीं उसे तेज झोकों से डर लगता है, तो कहीं मंद हवाओं से मायूसी।’’
‘‘जीवन उतना आसान नहीं जितना हम समझते हैं। इसमें बड़े पेच हैं। टूटे-फूटे रास्ते एकदम जुड़ भी जाते हैं, वहीं पक्की और मजबूत राहें गलत मोड़ पर छोड़ जाती हैं। सपने भी दिखाता है जीवन। सपनों को हकीकत भी बनाता है। सपनों के टूटने का सिलसिला भी जारी रहता है। सपने जुड़ते भी यहीं हैं। ख्वाहिशों की पूरी खेप हमारे साथ चलती है।’’
‘‘हम जानते हैं कि वे इतनी हैं कि इस जन्म में यह मुमकिन नहीं, फिर भी इच्छाओं को कम नहीं होने देते। अंजाम की परवाह न करते हुए भी हम कई काम ऐसे कर जाते हैं जो हमारी जिंदगी बदल जाते हैं। कुछ काम ऐसे होते हैं जो सोच समझकर किये जाने होते हैं ताकि परिणाम बेहतरी लिए हो। हम दुविधा में पड़ जाते हैं, तब फैसले मुश्किल होते हैं।’’
-Harminder Singh