बूढ़े शब्द
शब्द टंगे हैं खिड़की पर
रोशनी में नहाये,
बरसात होगी तो उतार लेंगे,
छीटों से बचाकर रखना है,
गीलापन सिलावट न ला दे.
फिर भी,
हां, फिर भी
कुछ बूंदें इतरा गयीं
और भिगो गयीं,
तो धूप में सुखा देंगे शब्दों को,
पर भीगने नहीं देंगे.
मगर जब,
हां जब
पुराने पड़ेंगे शब्द,
तब आस होगी खिड़की पर टंगना,
क्योंकि
मुश्किल होगी
कहीं बिखर न जायें.
न बूंदें इतरायेंगी,
न गीलापन होगा,
न सिलावट होगी,
हां, तब सिर्फ सिलवटें होंगी,
मुस्कराती हुई,
इठलाती हुई,
मगर चुपचाप।
-Harminder Singh