गायों के उद्धार के लिए समाज में जागरुकता की बहुत जरुरत है। |
देखने में आया है कि गौ-पालक गायों की सुख सुविधाओं की ओर खास ध्यान नहीं देते। कसाई के हाथों यह सुन्दर और उपयोगी निर्दोष पशु थोड़े समय में ही कत्ल कर दिया जाता है जबकि उसे पालने वाले कई लोग उसे तमाम जिंदगी परेशान करते हैं।
यह सभी जानते हैं कि गाय एक सफाई पसंद जीव है। वह मानव प्रेमी भी है। उसका दूध अनेक खाद्य और पेय पदार्थ बनाने में काम आता है। कई गौपालक उनके नवजात शिशुओं को भी दूध नहीं पिलाना चाहते और एक-एक बूंद दूध खींच लेते हैं। एक-डेढ़ माह में इन शिशुओं को दूध पिलाना बिल्कुल बंद कर दिया जाता है। जबकि मां के दूध पर उसका भी अधिकार है। गौ-पालक चारा और खल आदि खिलाकर दूध बढ़ाते हैं तो दूध पर उनका भी हक बनता है लेकिन शिशुओं को भी उनके हिस्से पर अधिकार बनता है।
गाय एक आजाद मिजाज पशु है। उसे प्रतिदिन घूमने-फिरने का भी समय दिया जाना चाहिए। लेकिन कई स्थानों पर यह पशु जीवन पर्यन्त एक ही खूंटे पर बंधा रहता है। यह उसके साथ बहुत बड़ा अन्याय है। यह पशु रेतीली और सूखी भूमि पर बैठना पसंद करता है। लेकिन देखने में आया है कि कई घरों में वे पक्के फर्शों पर ही खड़े रहते हैं या बैठते हैं। ऐसी गायों का बुरा हाल है। उनके स्वामी इस ओर कोई ध्यान नहीं देते। पीपुल्स फार एनीमल्स के कार्यकर्ता भी इस पशु की ओर से आंखें मूंदे हैं।
प्राय: सभी नवजात शिशुओं के पेट में कीड़े हो जाते हैं। ये कीड़े कई शिशु मां के पेट से ही ले आते हैं। यह पशु चिकित्सकों का कहना है। कीड़ा ग्रस्त शिशु सुस्त रहता है। उसकी आंखों से पानी भी निकलता है। उसे पशु चिकित्सक को दिखाकर दवा देनी चाहिए। लोग प्राय: ऐसा नहीं करते। फलत: बहुत से गाय के शिशु मर जाते हैं तथा कई बहुत ही कमजोर अवस्था को प्राप्त होते हैं। कीड़ों से उनके पेट में दर्द भी होता है। लेकिन ये मूक पशु अपनी व्यथा व्यक्त नहीं कर पाता। गाय अपने बचपन में बहुत ही संकट से गुजरती है।
गौ-वंशीय पशु को प्रतिदिन नियम से स्नान कराना चाहिए। इससे वह स्वस्थ और सुखी रहता है। साथ ही दूध भी ठीक देता है। गरमी के मौसम में तो अनिवार्य रुप से उसे नियमित स्नान कराया जाना चाहिए। ऐसा करने से शुद्ध दूध मिलता है। मक्खी-मच्छरों से भी उनका बचाव रहता है।
कुछ कसाई चोरी छिपे गौ-हत्या को अंजाम देते हैं जो बेहद क्रूर और पाप कर्म है। वैसे तो सभी जीवों की हत्या पाप है लेकिन गौ-हत्या पर तो कानूनी प्रतिबंध है। फिर भी इस दुधारु जीव की हत्या जारी है। कभी-कभी पुलिस वाले हत्या के लिए ले जाई जाने वाली गायों को छुड़ा लेते हैं। उसी से पता चलता है कि गायों की हत्या प्रतिबंध के बावजूद जारी है। इन गायों को पुलिस निकटवर्ती गौ-शालाओं में भेज देती है। लेकिन बाद में कोई पूछने वाला नहीं कि ये गायें कहां गयीं। कुछ गौशाला संचालक भी उन्हें बेच डालते हैं। हो सकता है उनमें से कई गायें कसाईयों के हाथ लग जाती हों।
गायों के उद्धार के लिए समाज में जागरुकता की बहुत जरुरत है। इसके लिए स्कूल-कालेजों में बच्चों को गाय की उपयोगिता और उसके बेहतर संरक्षण के बारे में गंभीरता से बताया जाना चाहिए। सरकार को गौकशी या क्रूरता वालों के लिए कठोर सजा का प्राविधान करना चाहिए।
-Harminder Singh