शिप्रा,
काश तुम मुझे समझ पातीं। ऐसा हुआ नहीं। बातें अधूरी रह गयीं। जिंदगी एक मोड़ पर आकर रुक गयी। आज ठहरा हुआ सा लगता है कुछ। ऐसा लगता है जैसे सिमट गयी हों हमारी प्यार भरी बातें।
वादे टूट गए। शायद वे बनते ही टूटने के लिए हैं। मुझे तुम्हारा एक-एक शब्द याद है। पर तुम क्यों भूलने का बहाना बनाती हो। कहती हो कि मैं तुम्हारी जिंदगी का हिस्सा नहीं। कहती हो कि तुम्हारा मेरा कोई नाता नहीं। यह तुम्हारी सोच को क्या हो गया है।
जमाने की अनदेखी मैंने की। हमेशा तुम्हारे लिए ओरों को नजरअंदाज किया। जब लोग कहते थे कि तुम मेरे लायक नहीं, तो मैं गौर नहीं करता था। मैं तब उन लोगों और उनकी बेमतलब बातों से बचने की कोशिश करता।
तुम भूल गयीं, तुमने मेरा हाथ थामकर कहा था,‘यह जिंदगी इसी तरह खुशी में लिपटी रहे।’
अब जिंदगी खुशी से अलग हो रही है। तुम्हें नहीं लगता कि हमारे बीच दूरियां बढ़ रही हैं। मैं नहीं, लेकिन तुम किनारे के पास खड़ी होकर मेरी ओर से आंखें बंद किये हो।
अधूरापन हौले-हौले मुझे घेर रहा है। तुम दूर जा रही हो, मगर तुम्हारी याद मेरा पीछा नहीं छोड़ती। काश....काश.....मैं इसका कुछ कर पाता। मेरी बदनसीबी, मैं कुछ नहीं कर पा रहा।
शाम की तन्हाई उलझी हुई बेलों की चादर के खुरदरे फर्श की तरह हो गयी है। नम आंखों में ओर नमीं बढ़ चुकी। काली रात और स्याह लग रही है। बंट गया है सब कुछ। टूटी कांच की तस्वीर के टुकड़े कब के सिमट चुके, पर बाकी हैं हसरतें यादों में जीने की।
दिल लगाकर क्यों छूट गया मेरा यार,
काश बैठकर मुझसे करता दो बातें,
अपने दिल का हाल बताता,
काश ऐसा अब हो पाता।
तुम्हारा,
श्याम.
-Harminder Singh
काश तुम मुझे समझ पातीं। ऐसा हुआ नहीं। बातें अधूरी रह गयीं। जिंदगी एक मोड़ पर आकर रुक गयी। आज ठहरा हुआ सा लगता है कुछ। ऐसा लगता है जैसे सिमट गयी हों हमारी प्यार भरी बातें।
वादे टूट गए। शायद वे बनते ही टूटने के लिए हैं। मुझे तुम्हारा एक-एक शब्द याद है। पर तुम क्यों भूलने का बहाना बनाती हो। कहती हो कि मैं तुम्हारी जिंदगी का हिस्सा नहीं। कहती हो कि तुम्हारा मेरा कोई नाता नहीं। यह तुम्हारी सोच को क्या हो गया है।
जमाने की अनदेखी मैंने की। हमेशा तुम्हारे लिए ओरों को नजरअंदाज किया। जब लोग कहते थे कि तुम मेरे लायक नहीं, तो मैं गौर नहीं करता था। मैं तब उन लोगों और उनकी बेमतलब बातों से बचने की कोशिश करता।
तुम भूल गयीं, तुमने मेरा हाथ थामकर कहा था,‘यह जिंदगी इसी तरह खुशी में लिपटी रहे।’
अब जिंदगी खुशी से अलग हो रही है। तुम्हें नहीं लगता कि हमारे बीच दूरियां बढ़ रही हैं। मैं नहीं, लेकिन तुम किनारे के पास खड़ी होकर मेरी ओर से आंखें बंद किये हो।
अधूरापन हौले-हौले मुझे घेर रहा है। तुम दूर जा रही हो, मगर तुम्हारी याद मेरा पीछा नहीं छोड़ती। काश....काश.....मैं इसका कुछ कर पाता। मेरी बदनसीबी, मैं कुछ नहीं कर पा रहा।
शाम की तन्हाई उलझी हुई बेलों की चादर के खुरदरे फर्श की तरह हो गयी है। नम आंखों में ओर नमीं बढ़ चुकी। काली रात और स्याह लग रही है। बंट गया है सब कुछ। टूटी कांच की तस्वीर के टुकड़े कब के सिमट चुके, पर बाकी हैं हसरतें यादों में जीने की।
दिल लगाकर क्यों छूट गया मेरा यार,
काश बैठकर मुझसे करता दो बातें,
अपने दिल का हाल बताता,
काश ऐसा अब हो पाता।
तुम्हारा,
श्याम.
-Harminder Singh