मुझे जुकाम था। सर्दी का मौसम है इसलिए ऐसा हो सकता है। वैसे गर्मियों में भी जुकाम हो सकता है। दिन बढ़ने के साथ ही शरीर जकड़ लिया हो, ऐसा मुझे महसूस हुआ। इसे मैं अपने बारे में नई बात नहीं कह सकता। ऐसे पहले भी हुआ है, जब जुकाम के बाद बुखार ने मुझे आ घेरा। एक बात ओर मैं उन अनेक लोगों की श्रेणी में आता हूं जिनपर मौसम के बदलने का प्रभाव पड़ता है।
आमतौर पर मैं दवाईयों से बचने की कोशिश करता हूं। पढ़ा है कि दवाई एक तरह का जहर है। ज्यादा दवाओं का सेवन करने से शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता या इम्यूनिटी कम हो जाती है। यह बात मैंने डॉक्टर साहब को भी बताई।
बीमार होने पर आप झुंझलाने भी लग सकते हैं। मैंने अपने एक साथी से भी कहा कि मेरा मूड अजीब किस्म का हो रहा है। यह झुंझलाने की स्थिति की तरह है। उसे लगा मैं मजाक कर रहा हूं, लेकिन असलियत में ऐसा कुछ था ही नहीं।
डॉक्टर साहब से मुस्कान का आदान-प्रदान हुआ जो लाजिमी था। आजकल हाथ मिलाने तथा बेहतर तरीके से मुस्कराने की परंपरा बढ़वार पर है। बात तब बने जब दिल भी मुस्कराये। वैसे मुझे दिल की मुस्कान भाती है।
वो कहते हैं न, आध मर्ज डॉक्टर को देखकर ही दूर हो जाता है। समझ लीजिये ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ।
जीभ को बाहर निकालने को कहा गया, मैंने किया। डॉक्टर ने आले से जांच की और बोले,‘तुम्हारी धड़कन बहुत तेज है, सुनना चाहोगे।’ इसके चंद पलों बाद यह पहली बार था जब मैंने स्टैथिस्कोप से अपने दिल को धड़कते सुना, वह भी गंभीर मुद्रा में। मेरे साथी जो वहां मौजूद थे उन्हें लगा मैं कुछ ज्यादा ही सीरीयस हो रहा हूं।
बाद में वजन जांचा। कांटा 66 पर था। पिछले कई महीनों से मेरा वजन 65-66 ही चल रहा है। शु्क्र है उम्र अभी 60 नहीं हुई!
-Harminder Singh