बहन-बेटियों की शिक्षा, मान, सम्मान और सुरक्षा के प्रति उतना ही सचेत रहना होगा जितना आज के समय की मांग है... |
एक बात सामने आई की लोग थक चुके हैं, आहत हैं। इसलिए अपना आक्रोश प्रकट कर ही देते हैं। उनका गुस्सा जायज भी है। बलात्कार की घटनायें उस समय भी हुईं जिस दिन दिल्ली सड़कों पर थी। आज भी दरिंदगी रुक नहीं रही....
दिल्ली में 23 वर्षीय युवती के साथ कुछ बहशी दरिन्दों ने जो कृत्य किया है वह बेहद खौफनाक और अमानवीय है। इसके दोषियों को भी सजा दी जाये वह कम है। इसी के साथ सारे देश को बेहतर संयम, शांति और गंभीरता से इस विषय पर भी विचार करना चाहिए कि इस तरह की घटनाओं को रोकने के क्या उपाय किये जायें? केवल कड़े कानून या धरने-प्रदर्शन इस तरह की घटनाओं को नहीं रोक सकते।
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एक ओर जब सारा देश इस घटना के खिलाफ सड़कों पर चीख रहा था, लोग राज्यों से लेकर राजधानी में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भवन तक पहुंच गये थे और पुलिस की लाठियों तक की परवाह नहीं कर रहे थे, तब भी देश के कई भागों में लगातार बलात्कार और बलात्कार के बाद हत्याओं तक की घटनाओं का क्रम जारी था।
सारा देश एकजुट होकर जब बलात्कार जैसे घृणित और क्रूरतम अपराध के लिए फांसी और उससे भी कठोर सजा की मांग कर रहा था बल्कि इस पर अधिकांश लोग सहमत थे और सत्ता पक्ष और विपक्ष के साथ ही कई सामाजिक संस्थायें फास्ट ट्रैक अदालतों के गठन पर लगभग सहमत हो चुकी हैं, फिर भी ऐसे माहौल में अपराधी अपने काम को जारी रखे हैं बल्कि उसकी गति और तेज कर दी थी। क्या वे हमारे सभ्य समाज को चुनौती देना चाहते हैं?
वृद्धग्राम की प्रस्तुति समय पत्रिका
Samay Patrika January 2013 issue....Read Online or Download free
ऐसे में हमारे सामने सख्त कानून और त्वरित न्याय प्रक्रिया से भी बड़ी चीज की जरुरत है। हमारा देश विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों का देश है। हमें एक-दूसरे की सांस्कृतिक विरासत का सम्मान करना और कराना सीखना होगा।
बहन-बेटियों की शिक्षा, मान, सम्मान और सुरक्षा के प्रति उतना ही सचेत रहना होगा जितना आज के समय की मांग है। पुलिस, सरकार या प्रशासन के भरोसे अब सब कुछ नहीं चलेगा। इसपर भी सोचना होगा कि कई बार महिलायें अपनों का ही शिकार होती हैं, बल्कि कुछ आंकड़े तो यह बताते हैं कि यौन शोषण के अधिकांश मामलों में महिलायें अपने नजदीकियों की शिकार होती हैं।
कुल मिलाकर महिला सुरक्षा का मामला सड़कों पर धरनों-प्रदर्शनों से हल होने वाला नहीं है। यह बेहद पेचीदा मसला है। इसके लिए देश के सियासतदां, न्यायाविद और उच्च स्तरीय बुद्धिजीवियों को मिलाकर कोई न कोई हल निकालना चाहिए। एक-दूसरे को दोषी ठहराने से काम नहीं चलने वाला। यह केवल राजनैतिक बयानबाजी है। अब बहुत हो चुका।
-Harminder Singh