मुझे कहीं का पता चाहिए था। मेरे लिए कई चीजें बहुत मायने रखती हैं। यही उन्हीं में से था। ऐसा नहीं था कि वह मेरी जिंदगी और मौत का सवाल था, बल्कि मुझे कुछ किताबें खरीदनी थीं।
एक इंसान से मेरी मुलाकात हाल ही में हुई। ऐसा नहीं कि मैं उससे घंटों बातें करता हूं या फिर हमारी जान पहचान सदियों की है। दरअसल किताबों के मामले में बहुत ज्यादा सेंसेटिव हूं।
एक किताब को खरीदने के लिए मैंने उस इंसान को कुछ रुपये दिये। मैंने उसे यह भी समझाया कि वह उसपर डिस्काउंट जरुर लाये। वैसे मेरी एक खासियत यह है जिससे मेरे आसपास के अधिकतर लोग वाकिफ हैं कि मैंने दो रुपये के कलम पर भी 50 पैसे की छूट करवा लेता हूं। वो अलग बात है कि यह सुविधा केवल मेरे लिए ही है शायद।
यह मेरा किताब प्रेम ही था जो मुझे उस इंसान तक फेसबुक तक ले आया। जाने अनजाने मैंने उसे सर्च किया। मेरे एक मित्र ने मजाक-मजाक में उसे फ़्रेंड रिक्वेस्ट भेज भी दी। उधर उस इंसान ने उसे एक्सेप्ट कर लिया। अगले दिन रात को हाय! हैलो हुई, और अटकते-अटकते मैंने कुछ और पता करने के बजाय, किताब की दुकान का पता पूछा। उधर से जबाव आया,‘वेट’। इतने में मेरा इंटरनेट कनेक्शन जबाव दे गया। बार-बार कोशिश करने के बाद भी इंटरनेट सुविधा बहाल नहीं हुई। गर्मी थी, पसीना पहले ही कम नहीं था, और बहने लगा।
सुबह उठा तो फेसबुक पर मैसेज था पते के साथ। अंत में लिखा था-‘बाय!’।
कमाल था न, एक इंसान जिसे आपने पहले इतना इग्नोर किया हो, उसने आपको पता बता दिया। क्योंकि जिस इंसान की बात मैं कर रहा हूं वह शुरु में मुझे बड़ा ही अजीब लगा था। शायद मैंने उसे उतना महत्व नहीं दिया। अब माफी मांगने का वक्त नहीं है क्योंकि उसे बुरा नहीं लगा होगा शायद। आज भी वह मुस्करा ही देता है और सबसे बड़ी बात - "मुस्कराने में क्या जाता है?"
-Harminder Singh
एक इंसान से मेरी मुलाकात हाल ही में हुई। ऐसा नहीं कि मैं उससे घंटों बातें करता हूं या फिर हमारी जान पहचान सदियों की है। दरअसल किताबों के मामले में बहुत ज्यादा सेंसेटिव हूं।
एक किताब को खरीदने के लिए मैंने उस इंसान को कुछ रुपये दिये। मैंने उसे यह भी समझाया कि वह उसपर डिस्काउंट जरुर लाये। वैसे मेरी एक खासियत यह है जिससे मेरे आसपास के अधिकतर लोग वाकिफ हैं कि मैंने दो रुपये के कलम पर भी 50 पैसे की छूट करवा लेता हूं। वो अलग बात है कि यह सुविधा केवल मेरे लिए ही है शायद।
यह मेरा किताब प्रेम ही था जो मुझे उस इंसान तक फेसबुक तक ले आया। जाने अनजाने मैंने उसे सर्च किया। मेरे एक मित्र ने मजाक-मजाक में उसे फ़्रेंड रिक्वेस्ट भेज भी दी। उधर उस इंसान ने उसे एक्सेप्ट कर लिया। अगले दिन रात को हाय! हैलो हुई, और अटकते-अटकते मैंने कुछ और पता करने के बजाय, किताब की दुकान का पता पूछा। उधर से जबाव आया,‘वेट’। इतने में मेरा इंटरनेट कनेक्शन जबाव दे गया। बार-बार कोशिश करने के बाद भी इंटरनेट सुविधा बहाल नहीं हुई। गर्मी थी, पसीना पहले ही कम नहीं था, और बहने लगा।
सुबह उठा तो फेसबुक पर मैसेज था पते के साथ। अंत में लिखा था-‘बाय!’।
कमाल था न, एक इंसान जिसे आपने पहले इतना इग्नोर किया हो, उसने आपको पता बता दिया। क्योंकि जिस इंसान की बात मैं कर रहा हूं वह शुरु में मुझे बड़ा ही अजीब लगा था। शायद मैंने उसे उतना महत्व नहीं दिया। अब माफी मांगने का वक्त नहीं है क्योंकि उसे बुरा नहीं लगा होगा शायद। आज भी वह मुस्करा ही देता है और सबसे बड़ी बात - "मुस्कराने में क्या जाता है?"
-Harminder Singh