मौसम का मिजाज अभी बदलने वाला नहीं है। मैं इससे डरा हुआ बिल्कुल नहीं हूं। एक अच्छे खासे कोट के लिए मैंने दर्जी से अभी कोई सलाह-मश्विरा नहीं किया है। चाय या कोफी पीना अभी छोड़ने वाला नहीं। एक जर्सी के साथ दूसरी जर्सी भी पहनने वाला नहीं। कुल मिलाकर कोई ऐसी हरकत नहीं करने वाला जिससे लगे कि सरदी ने मुझपर ‘सितम’ ढहा रखा है।
वैसे एक बात आप भी जानते हैं और मैं भी कि दिन जल्द अच्छे होंगे। सूरज फिर लौटेगा पूरी शान से यही कहता हुआ -‘लो जी मैं आ गया, अब भुगतो।’
मुझे कोई मायूसी नहीं कि सरदी लोगों को रुला रही है। मुझे तो उनकी चिंता ज्यादा है जो सरदी का हव्वा बना रहे हैं। मैं कंबल वितरण करने का ढोंग नहीं कर सकता। मैं लोगों को आसरा दे सकता हूं। मैं जो बन सकता है कर सकता हूं, लेकिन दिखावा नहीं कर सकता।
रजाई में सिकुड़ कर रहने की आदत उतनी रही नहीं मुझे। मौसम बदल रहा है, तारीख बदल रही है। जनवरी आधी हो गयी। अब फरवरी आ रही है। शादी-ब्याह की चिंता में लोग सिकुड़ रहे हैं। लड़की वाले भी और लड़के वाले भी। चिंता पैसे की हटा दी जाये तो और भी कई काम होते हैं ऐसे मौके पर।
मेरे बूढ़े दादा और दादी अब इस दुनिया में नहीं रहे। दादी को चूल्हे पर रोटी बनाते हुए देखा है मैंने। दादा को हाथ सेकते देखा है मैंने। मैं भी उनके नजदीक बैठा हूं। मैंने भी उनके दुलार की गरमाई को महसूस किया है।
सच है न कि हम खुश हैं क्योंकि हमारे आसपास वे लोग हैं जो हमें भावनाओं की अंगीठी से तपा रहे हैं ताकि हम खुद से ये सवाल कभी न करें कि हम कभी कोहरे में कांप रहे थे, किसी ने हमें कंबल तक नहीं ओढाया।
क्यों न हम इस सरदी अपने रिश्तों को भावनाओं की गरमाहट से नये आयाम दें। क्यों न हम स्वयं को यह महसूस करने दें कि हम अकेले नहीं, हमारे साथ कितने लोग हैं जिन्हें हम जानते हैं और उनके लिए हम जरुरी हैं। उसी तरह ऐसा वे भी हमारे लिए महसूस करें।
यह श्रेष्ठ होगा जिंदगी के लिए। शायद इसी वजह से वह और खिलकर मुस्करायेगी।
-Harminder Singh