उसने जीना सीख लिया

उस दिन की यात्रा एक ऐसे शख्स के साथ थी जिसे मैं जानता हूं, लेकिन उतना नहीं। उस मित्र के बारे में ज्यादा नहीं बताना चाहूंगा। पर जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ेगी, परतें स्वतः खुलती जायेंगी। यह अद्भुत होगा उसे जानकर कि वह भी काफी हद तक मेरी तरह हो सकता है। उसका भी एक दिल है। उसमें भी धड़कन है। वह भी हंसी-मजाक पर शोध कर चुका है। एक भावनात्मक पहलू उसका भी है। वह उतना ही भावुक है और कई बार वह कुछ ज्यादा हो सकता है।

  यह अजीब लगता है न, कि कुछ लोग एक आसमान के नीचे रहते हैं आपके साथ। वे भी उसी तरह लगते हैं। एक पल उन्हें उतनी खुशी, मुस्कान दे जाता है। दूसरे पल वे सहम भी जाते हैं। एक दर्द, पीड़ा को अंदर समेटने की कोशिश करते हैं, मगर बादल छंटने का इंतजार वे नहीं करते। हम समझ नहीं पाते, हम अनजान होते हैं। वे रो भी सकते हैं, उसी पल रो भी रहे होते हैं। यह संसार है और उन्हें देखकर लगता है कि कुछ भी हो सकता है। भावनाएं खेल करती हैं, भावनांए गोते लगाती हैं और सिमेटने पर सिमटती नहीं कई बार।

  हमारी दोस्ती कोई ज्यादा पुरानी नहीं। एक मेल के जरिये मैंने उन्हें जाना और सबसे पहले फोन पर मैंने ही उनसे बातचीत का सिलसिला बढ़ाया। एक निश्चित दूरी थी। एक तार था और तकनीकी चमत्कार का सहारा। मुश्किल से तीन या चार मिनट की गुफ्तगू लगता नहीं था इतने आगे तक जायेगी।

  मेरी यात्रायें अक्सर लंबी नहीं होतीं। वहीं सिमटी होती हैं 100 किलोमीटर के दायरे में। उसी दिन जाना और उसी दिन लौट आना। यानि एक दिन में काम निपटाना। यह मैंने किसी से सीखा नहीं बल्कि अपनी समय सारिणी उसी तरह बनायी है। काम कोई लंबा चौड़ा नहीं, सिर्फ दो-तीन घंटे का एकतरफा सफर। कुल मिलाकर दिन के सात घंटों का व्यय।

  समय से तीन मिनट पहले मैं चौराहे पर था। कुछ ही देर में देखता हूं कि वे दौड़े चले आ रहे हैं। शोर था, वाहनों की आवाजाही और ट्रैफिक को संभालते गिने-चुने पुलिसवाले।

  आपने मामूली देर कर दी। -मैं मुस्कराया।

  उनका जबाव भी उसी तरह आया।

हम बस में सवार थे। पिछले एक महीने में मैंने बस से बहुत सफर किया। सप्ताह में कम से कम एक या दो दिन बस में ही बैठा।

  बातों का दौर चल निकला। ऐसा चला कि टिकट लेने की याद कंडक्टर के चिल्लाने पर आयी। यह नींद टूटने जैसा था। जबकि हमने साथ में कोई भयंकर सपना देखा नहीं था। आंख खुले सपने देखना कितना खतरनाक हो सकता है, यह हर किसी को मालूम है।

  मुश्किल से 20 लोग बस में सवार थे। चूंकि सर्दी थी, बस सरकारी थी और शीशे अधखुले थे, इसलिए कई लोग कंबल में लिपटे स्वयं को सुरक्षित महसूस कर रहे थे। ठंड से बचने का उपाय हमने नहीं किया क्योंकि हम थोड़ा झुक कर बैठे थे। इससे हमारी कमर में किसी तरह की समस्या नहीं आने वाली थी। वैसे भी बातों में जब आप बुरी तरह मश्गूल हो जाते हैं तो मौसम के मिजाज पर पहरा रखने की जरुरत नहीं पड़ती। मनोवैज्ञानिक नजरिये से इसे कठिन तरीके से समझाया जा सकता है, जबकि सरल तरीका दो मिनट में बताया जा सकता है। श्रेष्ठता सिद्ध करना भी कई लोगों के लिए अहम हो सकता है।

  खिड़की के शीशे बाहर का नजारा उतना साफ नहीं दिखा पा रहे थे। मित्र-बंधु दिल को खोलकर रख चुके थे और मैं भी। पुर्जे सिमटे थे और ऐसा लगता था जैसे उन्हें किसी कुशल कारीगर ने बांध कर रखा हो। यह विशेषता थी या नीरी अफवाह, साक्षात था तो बहुत कुछ और उसके दर्शन के लिए वहां रहना मौजूद था।

  बस को अचानक दूसरे रास्ते जाना पड़ा क्योंकि आगे रास्ता अवरुद्ध था। समय का सीधे तौर पर नुकसान था। लगभग तीन किलोमीटर का सफर अभी बाकी था। उसे पैदल तय करना आधा या पौन घंटा बरबाद करने के बराबर था। ऐसा हम में से कोई नहीं करना चाहता था। दूसरे लोगों के साथ हम भी खड़े थे। हम किसी वाहन का इंतजार करने लगे।

  सामने से एक ट्रैक्टर आता दिखाई दिया।

  यह बेहतर रहेगा। किराये की बचत होगी। -मैंने कहा।

  मित्र-बंधु चाहते थे कि ऐसा न हो। किराये की फिक्र उन्हें थी या नहीं, लेकिन उनका मन नहीं था कि वे किसी ऐसे वाहन की शोभा बढ़ायें जो केवल खेतों में अपनी शक्ति का प्रदर्शन उचित तरीके से करता है। जबकि मुझे कोई हर्ज नहीं था।
  इससे शरीर का अच्छा खासा व्यायाम भी हो जायेगा माननीय मित्रवर। -मैंने खासीयत बताने की कोशिश की।

  उनकी अब भी `न' ही थी। वहां बहस करना स्वयं को बेवकूफ साबित करने के बराबर था। बहस का पचड़ा मेरे लिए हमेशा बेमतलब का रहा है।

  करीब दस मिनट बाद एक टैंपो आया। उसमें जबरदस्ती सवार होना पड़ा। महिलायें और दो बच्चे। एक बच्चे को मैंने अपने गोद में बैठाया। थोड़ी देर बाद हम नियत स्थान पर मौजूद थे। अचानक मेरे मित्र को एक मंदिर नजर आया। वे हाथ जोड़े खड़े थे, शीष निवाया। प्रार्थना करने में समय लगा यही कोई चार या पांच मिनट। बहुत कुछ मांग लिया होगा उन्होंने। मैंने उनकी एक फोटो भी खींची। ऐसा मैं यादगार के लिए करता हूं ताकि यादें लोगों के स्थान बदलने के बाद भी मेरे पास रहें।

मौसम अपना रंग दिखाने में व्यस्त था। उसे कहां फिकर थी हम दोनों की। बादल के कतरे घने हो चुके थे और धूप खिलने की सोची नहीं जा सकती थी। गनीमत थी कि बारिश नहीं हुई।

  अब हम लौट रहे थे उसी दिशा से जहां से हमने शुरुआत की थी। काम निपट चुका था। उन्होंने चाय या कुछ खाने की बात कही जिसे मैं टाल गया।

  थोड़ी देर में हम आधा रास्ता तय कर चुके थे। हम सबसे पीछे बैठे थे और बस की प्रत्येक सवारी के सिर की बनावट मुझे स्पष्ट दिख रही थी। एक वृद्ध मेरे करीब था जो मुझसे दायीं ओर था, खिड़की के पास। हवा का झोंका छू नहीं सकता था क्योंकि इस बार सभी शीशे चुस्त-दुरुस्त थे। सरकार ने पैसा पूरा लगाया था या किस्मत से ऐसा था।

  बातों का ढेर हमारे पास था। सफर कट रहा था। उनके हाथ में मोबाइल फोन था जिसकी विशेषताओं का उन्होंने बखान जब शुरु किया तो वह लगभग आधे सफर के बराबर था। वे खुश थे, मैं भी।

  मैं जमकर मुस्करा रहा था। साथ उनका भी था, लेकिन कहीं न कहीं कोई ऐसी चीज उन्हें कचोट रही थी जिसका जिक्र वे करना नहीं चाहते थे या वह स्वतः ही नजरअंदाज होती जा रही थी।

  तुम इतना खुश कैसे रहते हो? -उन्होंने कहा।

  यह सवाल था या उनके दिल की वेदना, समझ नहीं पाया। उसकी छाप शायद ही कभी मिट पाये। उनके शब्दों का अर्थ बहुत गहरा था। यह वह तल था जो बाहर से सामान्य था, लेकिन उसे नापना मुश्किल। हृदय खुशी के साथ दर्द को समेटे था। एक सतह बहुत सपाट और सामान्य थी जबकि दूसरी मुस्कराने को विवश थी और वह ऐसा कर भी रही थी, लेकिन अवसर की तलाश उसे भी थी। तीसरी सतह थी बहुत गहरी और पुरानी जो वक्त के साथ एक अजीब संशय बना चुकी थी।

  उलझन का दायरा सिमटा हुआ नहीं था। वह विस्तृत था। उसे अनंत को स्पर्श करना था। एक विचार की छाया के कारण दर्द की बनावट को पहचानने वाला कोई नहीं था। एकांतवास में चीजों को समझना जहां कई लोगों के लिए सरल हो सकता है, वहीं कुछ लोग दूसरों से साझा करके चीजों को समझते हैं।

  मित्रवर की उलझन मुझे महसूस हुई। गहराई में जाने की सोची नहीं, लेकिन उथले पानी में कंकड़ जरुर मारने की चाह हुई। फिर यही सोचकर रुक गया कि कहीं हृदय की वेदना उभर न आये। यह सही नहीं है।

  मुझे खुशी है कि वह मना रहा है स्वयं को और बहुत हद तक मना चुका कि जिंदगी कभी सीधा-सपाट नहीं चलती। उसने खुद को समझाया भी होगा कि मोड़ डगमगाते जरुर हैं, लेकिन रास्ता तय करना उसने सीख लिया है, तभी वह मुस्कान के साथ जीता है।


-harminder singh