मैं गोते लगाने को बेताब था उस दुनिया के जहां मैंने पहले वक्त नहीं बिताया। यह खूबसूरत था, वाकई अद्भुत और अकल्पनीय। वास्तव में ऐसा हो रहा था। बंद कमरों और शीशों से जिंदगी का लुत्फ कभी उठाया नहीं जा सकता, यह मैंने तब जान लिया था....
बारिश रुकने वाली नहीं है। -एक अनजान व्यक्ति ने कहा।
मौसम पर यकीन नहीं किया जा सकता। -मैं बोला।
एक टिन शैड का सहारा लिए हम दोनों खड़े इंतजार कर रहे थे बरसात कम होने का। बूंदों की तड़-तड़ और आसमानी बिजली की कड़-कड़ ध्वनि निराशा के सिवा कोई नया काम नहीं कर रही थी। मैं घबराया हुआ नहीं था लेकिन सोच रहा था कि सुबह जल्दी कैसे उठा जायेगा। लगभग आधा घंटा पहले मैं गीली सड़क पर दौड़ रहा था। मैं पूरी तरह भीग चुका था और जूतों में पानी भर गया था। सड़क सूनसान थी। मेरे आगे एक व्यक्ति दौड़ रहा था इसी वजह से कि कहीं आसपास कोई छुपने का ठिकाना मिल जाये।
इस दौड़-भाग से करीब 15 मिनट पहले मैं कार में बैठा था। तब बूंदों के थमने का इंतजार मैंने एक घंटे तक किया था। मेरे एक साथी बाइक से निकलने की तैयारी में थे, पर किसी काम की अनिश्चितता के कारण वे ऐसा न कर सके। मैं भी न चाहते हुए उनके साथ व्यस्त हो गया। इसी के चलते बारिश की दस्तक हुई।
यह मौसम को बदल कर रख देगी। -मैंने खिड़की से बाहर गिरती बूंदों को बूंदों से टकराते हुए देखकर कहा।
सचमुच ऐसा हो सकता है। -किसी की आवाज आयी। रहा जो कोई भी हो, उसे मेरी बात पर भरोसा नहीं था। यह सही भी था क्योंकि मैं मौसम के बारे में नहीं जानता। मुझे उसकी प्रकृति के विषय में मालूम नहीं। न मैंने मौसम पर कभी शोध किया।
ठंड तो बढ़ सकती है। -मैं बोला। इस बार भरोसा था क्योंकि ऐसा हो सकता था।
उधर से कोई हलचल नहीं हुई। लगता था शब्दों की पोटली जम गयी थी। मेरे साथ ऐसा नहीं था। मैं खिड़की के सहारे पानी-पानी होती धरती को देख रहा था। एक मर्तबा खो गया था कि किसी ने पीछे से कंधे पर हाथ रख मुझे चौंका दिया।
मैं खामोशी के साथ उसे देखता रहा। उसकी आंखें मुझे बेहिसाब खूबसूरत दिखाई दीं। यह वही थी जिसकी कल्पना मैं पहले कर चुका था। उस वक्त की मखमली यादों
को कभी भूलना नहीं चाहता।
तुम बूंदों को निहार रहे हो। -वह बोली।
यह जिंदगी की तारीफ है। -मैंने कहा।
बरसात और पानी, जुड़ाव की कहानी। -वह वातावरण को कविमय करने पर तुली थी।
सपनों की परछाईं और अद्भुत संगम। हृदय की मुस्कान, दृश्य विहंगम। -मैंने भी तुकबंदी की।
वह मुस्करायी। मैं भी।
मुझे तुम अनोखे लगते हो। -उसकी आवाज मीठी लगी।
वह कोयल नहीं थी, वह मिस्री की तरह घुली नहीं, बल्कि हृदय के कण-कण में समाने लगी।
यकायक मैंने घड़ी की ओर देखा, खुद को समझाया कि यह आकर्षण की तरफ इशारा करता है। समय की अहमियत को समझा। चंद मिनटों में कार में सवार था। वह वहीं थी, चुपचाप और गुमसुम सी। मैं हाइवे पर दौड़ रहा था बूंदों की बस्ती के बीच।
शीशे पर बूंदों का गिरना और सरकना, गति और शोर मुझे जिंदगी की टूटन को समेटने पर विवश कर रहा था। रुकी हुई गाथायें एक साथ चल निकली थीं। उन्हें सिराहने आराम करने के बजाय बहुत दूर जाना था ताकि खुरदरापन मिट जाये।
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सड़क के दूसरी ओर दो मजदूर बीड़ी सुलगा रहे थे। मैं उन्हें पहचान नहीं सकता था क्योंकि उनकी दूरी काफी थी और बिजली के बल्ब की रोशनी उतनी नहीं थी। मजेदार बात यह रही कि मैं अपने साथ खड़े उस व्यक्ति का चेहरा भी ढंग से देख नहीं पाया जो मेरे साथ करीब आधा घंटा से अधिक समय से था।
उसने हाइवे पर एक दुर्घटना का जिक्र किया। बताया कि कैसे एक वाहन दूसरे से टकरा गया। बरसात के कारण यह घटना घटी।
सड़क पर चलना खतरे से कम नहीं। मौत कभी भी आ सकती है। -वह गंभीर होकर बोला।
घर से सुबह निकलने पर शाम तक सही सलामत वापस पहुंचना बहुत बड़ी बात है। -उसने फिर कहा।
अचानक उसका फोन बजा। वह उसके परिवार के सदस्य थे जिन्हें उसकी फिक्र हो रही थी। उसने 15 मिनट में घर पहुंचने का भरोसा दिलाया।
बूंदों का गिरना पहले से कम हुआ। मैंने चलने में ही भलाई समझी। वह पैदल चल पड़ा जबकि मैं दौड़ने लगा। एक वाहन मेरे करीब आकर रुका। मैंने मामूली गौर किया और अपनी चाल फिर कदमों को गति दी। कुछ लोग मेरे सामने से दौड़ते हुए आये और उस वाहन में सवार हो गये।
मुझे फिसलने का डर नहीं था। पैरों को मजबूती से जमाते हुए मैं दौड़ रहा था। यह सुबह की दौड़ की तरह था जिसकी गति बहुत कम होती है। इतना जरुर था कि मैं अब तेज बारिश से भी भयभीत होने वाला नहीं था। इतना भीगने के बाद मैं संतुष्टी का एहसास कर रहा था। एक अजीब सी मुस्कराहट मेरे गीले चेहरे पर तैर रही थी। ऐसा होने के कारण मेरे हृदय की धड़कन बढ़ गयी थी और रक्त का संचार स्वतः ही तेज था। सेहत के लिए यह कितना कारगर था, पता नहीं, मगर मेरी थकान को वह एक पल में मिटा गया। एक तरह की अशांति जो मेरे मन को कुछ देर पहले घेरे थी, फिलहाल गायब थी।
करीब छह फिट का मेरे जैसा व्यक्ति बरसात की सर्द रात में सूनसान सड़क पर हलचल मचाये था।
यह आजादी थी, एक एहसास था खुद के साथ होने का। चिल्लाने का मन कर रहा था। यह बताने का कि मैं ही मैं हूं। सन्नाटा नहीं था, बूंदों का शोर था और आसमानी बिजली की गड़गड़ाहट।
मैं गोते लगाने को बेताब था उस दुनिया के जहां मैंने पहले वक्त नहीं बिताया। यह खूबसूरत था, वाकई अद्भुत और अकल्पनीय। वास्तव में ऐसा हो रहा था। बंद कमरों और शीशों से जिंदगी का लुत्फ कभी उठाया नहीं जा सकता, यह मैंने तब जान लिया था।
-harminder singh
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