मेरी बहन को जब यह पता चला तो उसने अंकिता को समझाया कि बाहर बरसात का पानी अभी सूखा नहीं है। कहीं फिसल मत जाना। मैंने अपनी बहन की बात पर कोई गौर नहीं किया... |
मुझे उस दिन का काफी अफसोस है। मैं दुखी भी हूं। मुझे अपनी बहन की बात मान लेनी चाहिये थी। कह तो वह ठीक रही थी, लेकिन अंकिता के कारण सब गड़बड़ हो गया। वह खुद भी फंसी और मुझे भी फंसा दिया।
दसवीं की परीक्षायें चल रही थीं। मेरी तैयारी काफी अच्छी थी। उम्माद थी कि नब्बे प्रतिशत से कम नंबर इस बार किसी कीमत पर नहीं आने वाले। मैं बहुत उत्साहित था। मेरी दोस्त जिसे हम मोटी बुलाते थे मेरे साथ बैठकर पढ़ाई करती थी।
अगले दिन पेपर था। रात होने जा रही थी। अंकिता और मैं रिवाइज़ कर रहे थे। अचानक अंकिता ने कहा -" चलो थोड़ा टहल आते हैं। माइंड फ्रेश हो जायेगा।"
मेरी बहन को जब यह पता चला तो उसने अंकिता को समझाया कि बाहर बरसात का पानी अभी सूखा नहीं है। कहीं फिसल मत जाना। मैंने अपनी बहन की बात पर कोई गौर नहीं किया। उसने मेरा हाथ पकड़कर मुझे रोका भी लेकिन मैं कहां मानने वाला था। मां बाबूजी शादी में गये थे। वे घंटे भर में लौट कर आते।
मैं कुछ ही कदम चला कि फिसल गया। अंकिता मुझे संभालने के चक्कर में खुद गिरते-गिरते बची।
मेरी बहन आवाज सुनकर दौड़ती आयी और बोली -"मना किया था लेकिन माने नहीं।"
अगले दिन पीठ में दर्द के साथ परीक्षा दी।
बहन की वो बात आजतक नहीं भूला।
-sharad singh
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