इतवार के बाद सोमवार

मेरे लिये सोमवार और रविवार उतने मायने नहीं रखते। सप्ताह के सात दिन वही सुबह उठना, दिन भर भागदौड़ और शाम को देर तक काम करना।

इतवार का दिन सुकून भरा होता है। भागदौड़ उतनी होती नहीं। दिन आराम से गुजरता है। फोन पर कुछ लोगों से जरूर बात होती है। लेकिन खुलकर बात करने का समय इतवार नहीं हो सकता। इस दिन अपने परिवार और खुद को समय देना बिल्कुल अनुचित नहीं।
मेरे एक जानने वाले इतवार के दिन जमकर सोते हैं। सुबह 8 बजे तक ऐसा लगता कि करवट न बदली हो। 10 बजने पर भी खर्रांटों का सिलसिला जारी रहता है। 11 बजे हलचल होती है कि जाग हो गयी। एक घंटा बाद नहाये-धोये सोफे पर टी.वी. देखते मिलेंगे। जूस का मग हाथ में होगा जिसपर उन्होंने अपना नाम छपवाया हुआ है।

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जब कभी उनसे मिलना होता है तो 12 या 1 बजे जाता हूं। आईपैड पर अखबार पढ़ते हैं। मुझसे हर बार कहते हैं-" तुम अखबार वाले कभी किसी की स्टोरी को मसाला लगाते हो, कभी किसी को। किसी को तो बख्श दो।"
टी.वी. देखते हुये उन्हें बोलना पसंद नहीं। मैं पहुंचता हूं तो उन्हें टी.वी. बंद करना पड़ता है। फिर मैं खुद रिमोट लेकर उसे चालू कर देता हूं और मजाकिया ढंग से मुंह पर उंगली लगा लेता हूं। उनकी हंसी छूट जाती है, साथ में मैं भी हंसने लग जाता हूं। हारकर हम बरामदे में पहुंच जाते हैं जहां वे इतवार को शुक्रिया कहते हैं।
कहते हैं,"एक दिन तो अपना होता है।"
"लेकिन जब सोमवार आता है, मेरा मन करता है आज भी आराम होना चाहिये। कम से कम दो दिन कुछ काम न हो।"
सोमवार को फिल्मों में "खूनी मंडे" भी कहा गया है। सोमवार से सप्ताह की शुरूआत होती है। बच्चों को स्कूल जाने में सोमवार के दिन ज्यादा दिक्कत आती है। ऐसा इसलिये क्योंकि एक दिन पहले छुट्टी जो थी।
मेरे लिये सोमवार और रविवार उतने मायने नहीं रखते। सप्ताह के सात दिन वही सुबह उठना, दिन भर भागदौड़ और शाम को देर तक काम करना।
harminder singh

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