बढ़ती आबादी देश की अधिकांश समस्याओं का मूल है। बसों में, रेलगाड़ियों में, शहरों में, बाजारों में और सड़कों पर जिधर भी देखते हैं वहीं, स्त्री, पुरूष और बच्चों की भीड़ दिखाई देती है। राशन डीलर हो या रसोई गैस डीलर सभी के पास भीड़ है। कोर्ट-कचहरी और जिला मुख्यालयों तक में लोग अपनी बारी की प्रतीक्षा में बैठे-बैठे सूख जाते हैं। बिजली-पानी की अनुपलब्धता और स्कूल कालेजों में प्रवेश को लेकर मारामारी। सड़कों पर आये दिन लगने वाले जाम। ये सारी समस्यायें हमारे देश में बढ़ रही आबादी के कारण है। बेरोजगारों की फौज भी लगातार बढ़ रही है। उसके लिए भी लगातार बढ़ रही जनसंख्या ही मूल रूप से बड़ा कारण है। देश में जितने संसाधन बढ़ते हैं उससे अधिक नये लोग पैदा हो जाते हैं। जिससे हमारे सामने निरंतर नयी-नयी समस्यायें उत्पन्न होती जा रही है।
सबसे दु:खद बात यह है कि जन संख्या नियंत्रण में जो उपाय किये जा रहे हैं वे कारगर सिद्ध नहीं हो पा रहे। हमारें यहां के सभी राजनैतिक दल इस समस्या को जानते हुए भी अनजान हैं। कांग्रेस, भाजपा, सपा, बसपा कोई भी राजनैतिक दल इस ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे रहा। रामदेव जैसे भ्रष्टाचार का विरोधी होने का ढोंग तो करते हैं लेकिन इस ओर वे भी कोई ध्यान नहीं दे रहे। अन्ना हजारे जैसे तो मंच से कहते हैं बड़ा परिवार ही अच्छा रहता है। कोई भी साधु संत इस ओर ध्यान नहीं दे रहा बल्कि कई संत पिछले दिनों अपने-अपने समुदायों से आबादी बढ़ाने का आहवान भी करते सुने गये।
...............................................................................समय पत्रिका मई अंक (यात्रा विशेषांक)
इंदिरा गांधी इस समस्या के प्रति 1976 में बेहद मुखर हुई थी। उन्होंने इसके लिए कुछ दबाव बनाया तो उनके विरोधी उनके खिलाफ लामबन्द हो गये और एक बेहतर काम करने के कारण इंदिरा गांधी को सन 1977 में सत्ता से हाथ धोना पड़ा। देश के बुद्धि जीवी आज भी उसे जयप्रकाश नारायण द्वारा संचालित एक क्रांतिकारी आन्दोलन का नाम देते हैं। बाद में सत्तारूढ होने के बाद इंदिरा गांधी या उनकी पार्टी के किसी भी पी.एम. या किसी नेता ने आबादी नियंत्रण पर खास ध्यान नहीं दिया।
जो वर्ग देश की आबादी बढाने में अधिक सक्रिय हैं। वे ही अपनी गरीबी और दूसरी समस्याओं के लिए सरकारों को दोषी ठहरा रहे हैं। जबकि देश के अन्न सहित दूसरे संसाधन और सुविधाओं के एक बड़े भाग को इन्ही वर्गों पर लुटाया जा रहा है। देश की प्रगति तब तक संभव नहीं जब तक आबादी पर लगाम नहीं लगेगी। दो से अधिक बच्चों वालों को सरकारी नौकरी और राजनीति से बेदखल किया जाना चाहिए। साथ इसके लिए एक कमेटी गठित कर कई अन्य सख्त फैसले लिए जायें तो देश में अंधाधुंध बच्चों की फसल पैदा करने वालों को लगाम लग सकती है। नहीं तो हमें चुपचाप हर समस्या को झेलते रहने को तैयार रहना चाहिए।
-Harminder Singh
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अन्नदाता के टूटते सपने
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जायें तो जायें कहां?
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अब बहुत हो चुका
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आपकी दामिनी!
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धार्मिक आयोजनों का औचित्य
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सबसे दु:खद बात यह है कि जन संख्या नियंत्रण में जो उपाय किये जा रहे हैं वे कारगर सिद्ध नहीं हो पा रहे। हमारें यहां के सभी राजनैतिक दल इस समस्या को जानते हुए भी अनजान हैं। कांग्रेस, भाजपा, सपा, बसपा कोई भी राजनैतिक दल इस ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे रहा। रामदेव जैसे भ्रष्टाचार का विरोधी होने का ढोंग तो करते हैं लेकिन इस ओर वे भी कोई ध्यान नहीं दे रहे। अन्ना हजारे जैसे तो मंच से कहते हैं बड़ा परिवार ही अच्छा रहता है। कोई भी साधु संत इस ओर ध्यान नहीं दे रहा बल्कि कई संत पिछले दिनों अपने-अपने समुदायों से आबादी बढ़ाने का आहवान भी करते सुने गये।
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इंदिरा गांधी इस समस्या के प्रति 1976 में बेहद मुखर हुई थी। उन्होंने इसके लिए कुछ दबाव बनाया तो उनके विरोधी उनके खिलाफ लामबन्द हो गये और एक बेहतर काम करने के कारण इंदिरा गांधी को सन 1977 में सत्ता से हाथ धोना पड़ा। देश के बुद्धि जीवी आज भी उसे जयप्रकाश नारायण द्वारा संचालित एक क्रांतिकारी आन्दोलन का नाम देते हैं। बाद में सत्तारूढ होने के बाद इंदिरा गांधी या उनकी पार्टी के किसी भी पी.एम. या किसी नेता ने आबादी नियंत्रण पर खास ध्यान नहीं दिया।
जो वर्ग देश की आबादी बढाने में अधिक सक्रिय हैं। वे ही अपनी गरीबी और दूसरी समस्याओं के लिए सरकारों को दोषी ठहरा रहे हैं। जबकि देश के अन्न सहित दूसरे संसाधन और सुविधाओं के एक बड़े भाग को इन्ही वर्गों पर लुटाया जा रहा है। देश की प्रगति तब तक संभव नहीं जब तक आबादी पर लगाम नहीं लगेगी। दो से अधिक बच्चों वालों को सरकारी नौकरी और राजनीति से बेदखल किया जाना चाहिए। साथ इसके लिए एक कमेटी गठित कर कई अन्य सख्त फैसले लिए जायें तो देश में अंधाधुंध बच्चों की फसल पैदा करने वालों को लगाम लग सकती है। नहीं तो हमें चुपचाप हर समस्या को झेलते रहने को तैयार रहना चाहिए।
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