जमीन अपनी है, जीवन नहीं

वही हाल, वही पुरानापन। खुद को समझना और समझाना। पुरानेपन का गीत जिसकी तान भी उसी के साथ जर्जर हो चुकी। वही चारपाई और वही मिट्टी.....
खोये हुए दिल को ढूंढने निकला था, लेकिन सफर कहीं बीच में ही रुक गया। जिंदगी के इस मोड़ में ऐसा होता है यह मुझे पता न था। उसकी अपनी एक अलग कहानी थी। वह समझ न सकी और मैं भी अनजान पथिक था। दोनों समानांतर रेखाओं की तरह खड़े हो एक दूसरे को ताकते रहे। यह सदियों तक चलता रहा। मायूसी में आंखों का नम होना जायज था।

‘मैं खामोशी के साथ जीना चाहती हूं।’ वह बोली।

हवा का झोंका आया और उसका लटें एक तरफ बिखर गयीं।

मैं उसे निहारता रहा। कोई शब्द उचरा नहीं। बादल थम गये थे। बिजली की गड़गड़ाहट कम न होने वाली थी।

सफर एक तमाशा बन गया। उपहास किया जिंदगी ने। बाकी नहीं रहा कुछ। लुट चुके आशियाने की तरह रौनकें बेनूर थीं।

अपनी झोपड़ी में वापस आ गया। वही हाल, वही पुरानापन। खुद को समझना और समझाना। पुरानेपन का गीत जिसकी तान भी उसी के साथ जर्जर हो चुकी। वही चारपाई और वही मिट्टी। जमीन अपनी है, जीवन नहीं। एक अपनाता है, दूसरा नहीं। उड़ जाना है गोते लगाते हुए छोड़कर सब कुछ। रह जानी है यादें। उनका भरोसा नहीं कि वे बाद में रहे भी न रहें।

harminder singh

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