जीवन ऐसा क्या जीना


मैं कहीं जी रहा,
किसी को परवाह नहीं,
यादों संग जीना भी कोई जीना है,
कहा था पहले जब नहीं था मालूम,
यादें कर देंगी जीवन को पूरा,
रहा मैं वैसे ही, नीरसता संग।

कैसा जीवन बीत रहा,
नहीं चाहता जीना,
खुद से गिला है मुझे,
औरों से खफा हूं,
लेकिन ये भी कोई जीना है,
फिर क्यों जी रहा मैं।

दुख को प्याले में सजा लाया,
तन्हाई की लौ जल रही,
गम के बिस्तरे पर बसा,
यारी-दोस्ती कहीं नहीं,
साथ नहीं, एकांत सही,
जीवन ऐसा क्या जीना।

-हरमिन्दर सिंह चाहल.

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