‘जीवन में सवाल अहम होते हैं। सवाल जिज्ञासा शांत करते हैं। सवाल जिज्ञासा से पनपते हैं। हमारी प्रवृत्ति ऐसी है कि हम हर चीज को देखकर मन में जिज्ञासा उत्पन्न करते हैं। यह हमारी पैदाइश से आरंभ हो जाता है। देखा है एक बच्चे को वह किस तरह अपनी आंखों से इस संसार को निहार रहा होता है। उसके लिए एक हलचल भी बहुत मायने रखती है। जीवन की वास्तविकता की एक-एक तह को वह पढ़ने की कोशिश में जन्म लेने के समय से ही लग जाता है। एक तरह से उसकी व्यवस्तता तभी से प्रारंभ हो जाती है। मतलब यह कि इंसान जन्म लेते ही काम में जुट जाता है। यह सिलसिला जिंदगी भर नहीं थमता।’
‘कहते हैं हर सवाल का उत्तर होता है। सवाल तब ही पूछा जा सकता है जब उसका उत्तर इस संसार में मौजूद होगा। हम जानते हैं कि जो चीजें हैं, उन्हें ही हम जान सकते हैं, समझ सकते हैं। जो नहीं है उसके बारे में हम विचार तक नहीं कर सकते। यानि जो पूछा जा सकता है, उसका उत्तर हो सकता है। जो नहीं पूछा जा सकता, उसका उत्तर नहीं हो सकता।’
मैंने काकी की सोच को बारीकी से पढ़ने की कोशिश की। उसने जीवन की शंकाओं का समाधान अपने तरीके से किया है। यह जीवन को नहलाने की तरह लगता है। स्वच्छ काया और समृद्ध जीवन की पद्धति पर चलने वाली बूढ़ी काकी जीवन को सवालों के घेरे में पाती है। सवाल जीवन भर रहेंगे। उनका अंत जीवन के अंत के साथ निश्चित है। जीवन उत्पन्न सवाल से हुआ था, खत्म भी उसी तरह होगा। लेकिन शायद तब भी हजारों सवाल रह जायेंगे, सवाल पूछने वाले रहे न रहें।
-हरमिन्दर सिंह चाहल.
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