बरसात के बाद उत्तरी भारत में क्वार माह के आरंभ से ही रामलीला मंचन का दौर शुरु हो जाता है। पूरे उत्तर प्रदेश के शहरों और ग्रामांचलों में रामलीलाओं का प्रचलन है। फिल्म और टीवी आने के वावजूद रामलीला का आकर्षण कम नहीं हुआ है। इसके मूल में जहां कुछ धार्मिक मान्यतायें हैं वहीं दर्शक कलाकारों को साक्षात अपने सम्मुख पाता है। यह उसके मनोरंजन का अलग अंदाज होता है जिसे वह पर्दे पर कभी भी प्राप्त नहीं कर पाता।
कुछ लोग रामलीला मंचन में उस समय तक ठहरते हैं जबतक वहां फ़िल्मी गानों और डांस का कार्यक्रम चलता है। इनमें अधिकांश नवयुवक होते हैं। सभी स्थानों पर मनोरंजन के लिए शुरु में कुछ समय तक यही क्रम चलता है। इससे भीड़ भी जुड़ती है और लोग पैसा भी फेंकते हैं। इसी से रामलीला कमेटियों को आय भी होती है।
ग्रामांचलों में अधिकतर कलाकार ब्रज क्षेत्र से लाये जाते हैं जो सभी पुरुष होते हैं और स्त्री-पुरुष दोनों का समान रुप से किरदार निभाते हैं। फिर भी इन कलाकारों की दक्षता के कारण वे अपने किरदार को सफलता के साथ प्रस्तुत करते हैं।
हमारे देश में आज भी राम को मर्यादा पुरुर्षोत्तम के रुप में अवतार मानने वालों की संख्या काफी है। वास्तव में समाज सुधार के लिए ही रामलीला मंचन की प्रथा प्रचलन में आयी जिसे आजकल लोगों ने धीरे-धीरे मनोरंजन प्रधान बना दिया और उसके वास्तविक उद्देश्य को गौण कर दिया है। यही कारण है कि सीता का वेश धारण किये कलाकार मंच पर मौजूद रावण वेशधारी खलनायक के सम्मुख दर्शकों की फरमाइश पर नृत्य करते हुए देखा जा सकता है।
ग्रामांचलों में कई स्थानों पर नर्तकियों के कार्यक्रम भी आयोजित किये जाते हैं। इस तरह के मौकों पर कई शरारती तत्व कुछ न कुछ शरारत भी करने का मौका तलाशते हैं तथा ऐसा करने में सफल भी हो जाते हैं। वैसे रामलीला स्थलों पर सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस बल जरुरत के मुताबिक तैनात रहता है। साथ ही रामलीला कमेटियां अपने स्तर से अच्छा प्रबंध रखती हैं। अब सभी जगह रामलीला शुरु होने लगी है। अतः हम सभी को इससे अच्छी शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए। साथ ही स्वस्थ मनोरंजन भी करना चाहिए। मर्यादित मनोरंजन सिखाती है रामलीला।
-हरमिन्दर सिंह चाहल.
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