जीवन की आपाधापी...
शोर-शराबा,
मैं हूं अकेला...
बिल्कुल तन्हा,
नहीं चाहिए कोई...
हाल जो है मेरा,
खुश हूं मैं यहीं...
नहीं चाहिए खुशी।
गीत पुराने हो चले...
सुर गड़बड़ा रहे,
सुधबुध खोता मैं...
चल रहा अकेला,
बुझ रही लौ...
मद्धिम पार कहीं,
खुश हूं मैं यहीं...
नहीं चाहिए खुशी।
-हरमिन्दर सिंह चाहल.
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