औद्योगिक विकास, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और कृषि क्षेत्र के सहारे देश में मौजूदा केन्द्र सरकार रोजगार के अवसर उत्पन्न कर लगातार बढ़ रही बेरोजगारों की फौज को काम देने का प्रयास करती लगती है। शिक्षा, बैंकिंग सेवाओं और तकनीकी क्षेत्र में दक्ष युवाओं को उनकी संख्या के सापेक्ष बहुत कम मौके हैं। जबकि शिक्षित तथा प्रशिक्षित नव युवकों की कतारों की लंबाई साल दर साल बढ़ती जा रही है। इसका मूल कारण देश की बढ़ती आबादी की रफ्तार पर विराम न लगना है। बेरोजगारी और भ्रष्टाचार सहित दूसरी समस्याओं पर लाख कोशिश के बावजूद सफलता हाथ न लगने के पीछे बढ़ती आबादी ही मूल कारण है। जब तक आबादी पर काबू नहीं पाया जायेगा तबतक दूसरी समस्याओं का समाधान असंभव है।
हमारे देश की आबादी प्रति वर्ष सवा करोड़ से भी अधिक बढ़ जाती है। जबकि देश में सरकारी तथा गैर सरकारी स्तर पर चार या पांच लाख नौकरियों के कारण ही व्यवस्था मुश्किल से हो पाती है। शेष आबादी या तो स्वरोजगार का प्रबंध करती है या लंबे समय तक रोजगार की तलाश में भटकते हुए कुंठापूर्वक जीवन व्यतीत करती है। इनमें से बहुत से नवयुवक ‘बुभुक्षितः किम् न करोति पापम्’ के शास्त्रोक्त सिद्धांत के वशीभूत अपराध जगत में प्रवेश को बाध्य होकर अपना तथा अपने साथ और बहुत से दूसरे लोगों का जीवन भी बरबाद कर बैठते हैं। कई नशे आदि की अवैध लतों के शिकार हो जाते हैं। आतंकवाद की दुनिया में भी निर्धनता के मारे कई किशोरों को फुसलाकर बरबाद किये जाने के मामले प्रकाश में आये हैं। ऐसी परिस्थितियों के मूल में भी असीमित बच्चों के बेहद सीमित आय वाले परिवारों की संख्या ज्यादा है।
क्षेत्रफल और सीमित संसाधनों के अनुपात में हमारे देश की आबादी बहुत अधिक है। आबादी के भार से दबे शहरों में इतना बुरा हाल है कि सभी सड़कों, चौराहों और गलियों में वाहनों का जाम लगना आम बात है। खड़े-खड़े ही वाहनों में ईंधन फुंक रहा है। चार कदम का सफर भारी मुसीबत हो जाता है। लोग घरों और दुकानों में फंसे पड़े हैं। रास्तों में भी फंस जाते हैं। शहरों की बात छोड़िये, शहरों से बाहर कस्बों और देहातों के पास से गुजरने वाली सड़कों को पार करना मुश्किल होता जा रहा है। नेशनल हाइवे दुघर्टनाओं के हाइवे बनते जा रहे हैं। बढ़ती आबादी के साथ ही इन सड़कों पर ट्रैफिक की भीड़ बढ़ती जा रही है। यदि आबादी नियंत्रित नहीं की गयी तो हाइवे पर भी वाहन रेंग कर चलेंगे।
ट्रेनों में प्रतिवर्ष बोगियां बढ़ाई जाती हैं लेकिन आबादी उससे कहीं अधिक बढ़ जाती है। लिहाजा हर त्योहार पर पहले त्योहार से ट्रेन छोटी पड़ जाती है। स्कूल, कालेज और प्रशिक्षण संस्थाओं की संख्या बढ़ने के वावजूद बच्चों को एडमीशन नहीं मिल रहे। सीटें खाली नहीं। कारण आबादी का ग्राफ तेजी पर है। प्रतिवर्ष पढ़ लिख कर लाखों नवयुवक संस्थाओं से बाहर निकलकर जब काम तलाश करते हैं तो वे यह देखकर दंग रह जाते हैं कि उनसे पहले ही लाखों योग्य युवक काम के लिए कतार में हैं तथा न जाने कितने आने वाले हैं।
आज हमारे देश की राजनीति में भी ऐसे नवयुवक भारी संख्या में चले आये हैं जिन्हें कहीं काम नहीं मिला। इनमें बहुत से प्रताड़ित, हताश तथा बेरोजगारी से ग्रस्त युवक भी हैं। समय, असमय जिनमें से बहुत से सफल भी हो गये हैं तथा कुछ सफलता की ओर अग्रसर हैं तथा कुछ अभी उज्ज्वल भविष्य के लिए संघर्षरत हैं। लेकिन यह संख्या आटे में नमक से भी कम है। जबकि यहां तो सारा आटा ही नमक हुआ पड़ा है। यहां संसाधन आटा और आबादी नमक है, जबकि आबादी नमक तथा संसाधन आटे के अनुपात में होने चाहिएं। आबादी को रोके बिना देश तरक्की नहीं कर सकेगा।
-जी.एस. चाहल
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