कहानी फिर शुरू होगी



मन क्या कह रहा है,
कितना कुछ सह रहा है,
उफ! नहीं करता,
गम में बह रहा है,
विचित्र संयोग है,
या किसी का वियोग है,
ठहरा, थमा, जा रहा है,
चुप्पी साधे, उदासी ओढ़े,
अश्रू बहा रहा है।

काया पुरानी करे तो क्या करे,
जीवन जिया जितना,
दूसरों के दुख-पीड़ा हरे,
अब न कोई अपना न पराया है,
पराजित, अपमानित जीवन,
अंतिम दिनों में पाया है।

जाना है उस पार अब,
दिन पूरे होने वाले हैं,
काया-शरीर-देह,
सब उसके हवाले हैं।

कहानी फिर शुरू होगी,
हां, नयी कहानी फिर शुरु होगी।

-हरमिन्दर सिंह चाहल.

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