मैं हमेशा सोचता हूं कि हम जद्दोजहद क्यों करते हैं। दिन-रात भागदौड़ करते हैं। नये लोग मिलते हैं, कुछ बिछड़ते हैं। बातें हजार और चुप्पी डेढ़। यह सुनने में अजीब लगता है।
कोई कहता है कि जीने के लिये मेल-मिलाप जरूरी है। बातें जरूरी हैं। तभी जिंदगी आगे बढ़ती है, नये मुकाम छूती है।
सच में हमारी जिंदगी अनोखेपन को लिए हुए है। हम भी उसके साथ तैर रहे हैं। उम्र बढ़ने के साथ ही हमारी सक्रियता कम होने लगती है। कमजोरी बहुत कुछ बयान करती है।
जब आप ऐसे माहौल में स्वयं को पाते हैं जहां चीजें किसी किनारे पर ठहरने को बेताब नहीं, तो आप असहाय भी हो जाते हैं। यह बुढ़ापा है। यह वह समय है जब इंसान जीवन को दूर से देख रहा होता है। बीते कल की यादों को समेट रहा होता है।
बीता कल भी मजेदार है न। कुछ भी उस तरह स्पष्ट नहीं- खरोंचे लिये तस्वीरें और धुंधली जिंदगी के लम्हे।
मैं खुद से बातें करता हूं। वह एकांत है, शांति, सुकून से भरे पल। मन को महसूस करता हूं। हां, खुद को महसूस करता हूं। समझ नहीं पाता कि क्या है, क्या नहीं और क्या घट रहा है। इतना जरुर है कि घटनाओं का एक कायदा है और वह निरंतर है।
बादलों को छू नहीं सकते। बूंदों को जरुर महसूस किया है। मेरे हाथ जर्जर हैं। मैं जर्जर हूं। गर्दन संभलती नहीं, लेकिन जीवन को निहारने का सिलसिला रुका नहीं। थम जायेगी मेरी सांस एक दिन।
न वक्त थमेगा, न जीवन। न मेरा वजूद होगा, न बोल। केवल यादें होंगी और वे भी चुनिंदा।
काश मैं कुछ दिन और जी पाता। काश वक्त ठहर जाता। काशा बुढ़ापा न आता।
लेकिन सच यह है कि बुढ़ापा आना है, जीवन जाना है।
-हरमिंदर सिंह चाहल.
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