बुढ़ापा : जर्जर पन्नों की किताब
खामोशी है,
मद्धिम उजाला,
वहां बैठा ओट में कोई,
बुजुर्ग अकेला,
कमर टिकाये तने से,
हताश दिख रहा है,
बोल कुछ बोले क्यों,
सूरज छिप रहा है।
देख रहा इधर-उधर,
घबराया है मन,
कराहता बीच-बीच में,
जर्जर है तन,
वह भूखा है,
दिन गुजरे,
कोई टुकड़ा मिले,
वह पेट भरे।
जानता है वह कि
कौन सुनेगा उसकी,
न परिवार है,
धन-दौलत जिसकी,
वक्त पर छोड़ दिया,
जीवन का हिसाब है,
सच है,
पन्ने हैं जर्जर जिसके,
बुढ़ापा वह किताब है।
-हरमिन्दर सिंह चाहल.
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