बुढ़ापे में जिंदगी का जश्न

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आइना सामने है। उसमें दिखता मैं, और चारों ओर गहरे काले घेरे। चेहरे पर अनेक आड़ी-तिरछी लकीरें चीख-चीख कर कहती हैं कि बूढ़े हो गये हो तुम। शरीर की तमाम कमजोरियां जैसे कम सुनाई देना, कम दिखाई देना यही बयां करते हैं। कुछ दूर चलते ही सांस फूलना, जल्दी थक जाना भी ये कहानी दोहराता है।

दूर क्षितिज के पार खड़ी दिवंगत पत्नी भी ये कहती है कि अब आ जाओ मैं तुम्हारा बरसों से इंतजार कर के थक गयी हूं।

मेरे दिवंगत माता-पिता, भाई-बहन सभी तो बुला रहे हैं। आखिर मैं उनका लाडला छोटू ही तो हूं। ये उनका हक है और प्यार भी जो मुझे उनकी ओर खींचता है।

पर इस मायावी संसार की तमाम मातायें मुझे रोकती हैं। मेरा परिवार, मेरे अपने, बेटियां, उनके परिवार, उनका मोह, स्नेह रुकने के लिए कहता है।

दिल कहता है, मैं अभी जवान हूं। दिमाग कहता है, मैं भी जवान हूं। मैं स्वयं भी अपने आप को जवान कहता हूं। वैसा दिखने के लिए बालों का काला करता हूं -फेस मसाज, हैड मसाज कराता हूं। योग और थोड़ा व्यायाम करता हूं।

सबसे बड़ी बात मैं बच्चों और युवाओं के संग रहता हूं। उनके साथ खेलता हूं, मस्ती करता हूं। शायद यही कारण है कि मैं हमउम्र लोगों से अधिक कमसिन और फिट दिखता हूं।

इसलिए कहता हूं कि उम्र की गिनती मत करो। बुढ़ापे का शोक मत मनाओ। अपनी कमजोरियां, परेशानियां भुलाकर जिंदगी का जश्न मनाओ। मौत और उसकी आहट को भूल दुनिया में खो जाओ। अपने तमाम शौक पूरे करो। जिंदगी का जश्न मनाओ और खुलकर जियो।

-अखिलेश चन्द्र श्रीवास्तव.

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