ख़ामोशी से जीवन के पड़ाव पार कर गया,
उतरता हुआ, लहरों की परतों को छूते हुए,
उम्रदराजी है तो क्या हुआ?
जिंदगी अब भी वैसे ही सांस ले रही है.
उगते सूरज की पहली किरण का एहसास,
कुछ कम नहीं, कुछ ज्यादा नहीं हुआ,
वही मैं, वही मेरी चाहतों का बसेरा,
टूटते हुए पलों की बात मौज ले रही है.
कांपते हुए हाथों की गहरायी इतराती हुई,
सुकून से जीने की चाह मरी नहीं,
सुस्त, पैदल इरादों की दबिश में कहीं,
उम्मीदों की गठरी हिलौरें ले रही है.
खुशबू ऐसी कि खोने का मन ही है,
हर बार सहारे की जरुरत हुई है,
दूर देखता हूं, धुंधला है जायका भी,
क्या कसूर मेरा, जिंदगी बदला ले रही है.
-हरमिंदर सिंह.
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