गर्मी कुछ दिन से कम थी. लेकिन अचानक मौसम में नमीं की वजह से बादलों का घिरना जरुरी था. ऐसा लगा जैसे उन्होंने घेराबंदी की, और वे इसमें कुछ हद तक कामयाब भी रहे. वो अलग बात है कि अधिकतर पानी गजरौला के खादर को सौंप दिया. वहाँ काफी इलाके में बरसात हुई. गजरौला के कुछ हिस्से मामूली छींटों से भीगे ज़रूर, मगर उसका असर ज़्यादा देर नहीं रहा. शाम तक उमस और उसकी वजह से उपजे पसीने ने शरीर को बेहाल किया.
सुबह 11 बजे से कुछ पहले जब हमने गंगा के खादर क्षेत्र में जाने का फैसला किया, तब तक मौसम जैसा हमने सोचा था वैसा ही था. हालात तब भी सामान्य थे जब हमने रेलवे क्रॉसिंग पार किया.
कुछ मीटर ही आगे चले होंगे कि बूँदा-बाँदी शुरू हो गई. हिसाब लगाया और आसमान में बादलों की स्थिति को ध्यान से देखा. चंद सेकण्ड में यू-टर्न लेना पड़ा. बारिश ने उसी दौरान तेज़ी पकड़ी, हमने कोई ठिकाना.
वह एक चाय का खोखा था जहाँ पान मसाला भी टँगा हुआ था. दो कुर्सियाँ, कोई मेज नहीं, दो आदमी. एक की उम्र कोई 40 रही होगी. दूसरा किशोर लग रहा था. करीब तीन-चार मीटर का एक छज्जा था जिसके नीचे हम खड़े हुए. उसने विनम्रता से कुर्सियों को आगे किया ताकि हम बैठ सकें. मेरे साथी कुर्सी पर बैठने की इच्छा रखते थे, लेकिन मेरी वजह से नहीं बैठे. मैंने उन्हें इशारा किया, लेकिन उन्होंने दोनों हाथों को इस तरह किया और मेरी ओर देखा जिसका मतलब था 'नहीं, रहने दीजिए'.
अब बूँदों ने तेज़ी दिखाते हुए ज़मीन पर प्रहार शुरू किये. पहले से प्यासी मिट्टी कुछ मिनटों में बहने लगी. छींटे इस तरह बिखरे कि मेरी बादामी पैंट और जूतों पर उसका बुरा असर साफ़ देखा जा सकता था. मिट्टी के बारीक कण पानी के साथ मिलकर कीचड़ की शक्ल ले चुके थे. दौड़कर हम करीब के हॉल में पहुँचे जहाँ चारपाई पर एक आदमी बनियान और जींस में मोबाइल में आँखें गढ़ाए हुए था. एक राहगीर भी भीगने से बचने के लिए उसी वक्त वहाँ बाइक से आया. उसने झट से जेब से रुपए और कुछ कागज़ों को निकाला जिन्हें बाद में वहाँ रखी एक कुर्सी पर अलग-अलग किया.
उसी दौरान एक काला कुत्ता भी वहाँ चला आया. चूँकि मैं ऐसे अवसरों को कैमरे में कैद करने से पीछे नहीं छूटता, मैंने उसे भी कैप्चर कर लिया. वह भी हमारी तरह बाहर का नज़ारा देखने में व्यस्त हो गया. तेज़ी से कुछ कारें गुज़रीं, ट्रक और अन्य वाहन. मोटर साइकिल पर सवार एक परिवार भी गुज़रा -पापा, मम्मी और छोटा बच्चा. उन्हें तब तक देखता रहा जब तक वह उस विशाल पेड़ के नीचे नहीं रुक गया जहाँ उन्हें लगा कि बारिश से बचाव हो सकता है. शायद बरसात अपना काम तब तक कर चुकी थी. वे बुरी तरह भीग गए थे.
तीन लड़के स्कूटी पर सवार जिन्हें बाद में अपना रास्ता बदलना पड़ा करीब के पैट्रॉल पम्प पर रुके. उन्हें वहाँ से मैं साफ़ देख सकता था. एक घोड़े ने भी उन्हें देखा. वह बारिश होने से पहले से वहाँ चर रहा था.
एक वृद्धा जो किसी वाहन के इंतज़ार में थी, कमज़ोर क़दमों से आगे बढ़ गई. उसके कंधे पर एक बैग था जिसे उसने मजबूती से पकड़ रखा था.
वहीं हाथ में डंडा लिए एक आदमी लगता था बारिश का आनंद ले रहा है. वह आराम से सड़क किनारे चलता रहा.
आसमान से पानी का बरसना रफ़्तार थाम गया था. सड़कें कुछ वक्त के लिए ठहर-सी गई थीं. जो लोग किसी ठिकाने में आसरा लिए हुए थे, उन्हें इंतज़ार था बादलों के छँटने का. आधा घंटा बौछार हुई. फ़िर वही एक-दूसरे से अनजान लोग अपने-अपने रास्ते हो लिए.
~हरमिन्दर चहल.